अहमदनगर | १६ जुलाई | संवाददाता
(India news) अहमदनगर जिले के नगर-जामखेड मार्ग पर स्थित ऐतिहासिक ‘हत्ती बावड़ी’ को राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक घोषित करने की प्रक्रिया अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच रही है। ता.१४ जुलाई को जिलाधिकारी डॉ. पंकज आशियाने स्वयं इस स्थल का दौरा कर पूरी वास्तु का निरीक्षण किया। इस अवसर पर तहसीलदार संजय शिंदे, तलाठी सुरेश येवले, केंद्रीय पुरातत्व विभाग के अधिकारी संदीप हापसे, एमआईआरसी के सूबेदार दत्ताजी गावडे और इतिहासप्रेमी सुरज कपाले तथा नगर ट्रेकर्स टीम मौजूद रही।
(India news) यह बावड़ी निजामशाही काल में सलाबत खान द्वितीय द्वारा निर्मित बताई जाती है। ९० x ९० फुट के विशाल आकार वाली यह ‘विजया’ शैली की बावड़ी चारों ओर से सीढ़ियों से युक्त है। वर्षा ऋतु में पूरी तरह भरने पर यह लगभग १.७५ करोड़ लीटर पानी संग्रहित कर सकती है। विशेष खापरी पाइपों के माध्यम से इसका जल दो किलोमीटर दूर स्थित फराहबक्ष महल तक पहुंचाया जाता था।
(India news) ब्रिटिश शासन काल में इसे ‘भंडारा नल योजना’ नाम से चिन्हित किया गया था और इसके नक्शे तत्कालीन दस्तावेजों में दर्ज हैं। इसका स्थान प्राचीन व्यापारिक मार्ग पर था, जो जुन्नर-नाणेघाट होते हुए अहमदनगर, पैठण और तगर-तेर जैसे शहरों को जोड़ता था। मुख्य बावड़ी के अलावा यहां मोट का मंडप, जल प्रबंधन कक्ष, देवस्थल और चारों ओर सीढ़ियाँ जैसी वास्तुकला विशेषताएँ भी मौजूद हैं।
इस स्मारक को राष्ट्रीय दर्जा दिलाने हेतु कई विभागों से अनुमति प्राप्त की गई है. ग्राम पंचायत, वन विभाग और सैन्य क्षेत्र की ‘ना हरकत’ मिल चुकी है। अब केवल सार्वजनिक बांधकाम विभाग की मंजूरी और संपत्ति पत्र में ‘हत्ती बावड़ी’ का आधिकारिक दर्ज करवाना शेष है। जिलाधिकारीने प्रस्ताव को प्राथमिकता देकर प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के आदेश दिए हैं।
अगर इसे राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया गया, तो यह स्वतंत्र भारत में अहमदनगर जिले का पहला स्मारक होगा। वर्तमान में संभाजीनगर मंडल में ७५ राष्ट्रीय स्मारक हैं, जिनमें से २९ अहमदनगर जिले में हैं — परंतु वे सभी ब्रिटिश काल के दौरान अधिसूचित किए गए थे।
यह कदम केवल सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण नहीं, बल्कि आगामी पीढ़ियों के लिए इतिहास का उत्तरदायित्व भी सिद्ध होगा। नगर ट्रेकर्स संस्था और इतिहासकारों ने नागरिकों से इस बावड़ी के संरक्षण में भाग लेने की अपील की है।