(Culture) जंगलों, खेत की मेड़ों, पगडंडियों, या सड़कों के किनारे स्वतः उगनेवाली पौष्टिक और औषधीय गुणों से भरपूर सब्जियों को ‘जंगली सब्जियाँ’ याने ‘रानभाजी’ कहा जाता है। बिना बीज बोए, बिना कोई मेहनत किए प्राकृतिक रूप से उगनेवाली यह सब्जियाँ पोषण के लिए अत्यंत लाभकारी होती हैं। आज जब शहरों में रासायनिक खादों से उगाई गई सब्जियों के कारण स्वास्थ्य बिगड़ रहा है, तब लोगों को इन जंगली सब्जियों का महत्व समझ में आने लगा है।
(Culture) परंतु यह समझना और उसे अपनाना दोनों अलग बातें हैं। जिन लोगों को सजावटी बोंसाई पेड़ लगाने में रुचि है, वे रसोई के लिए जैविक तरीके से सब्जियाँ उगाने में अभी भी पीछे हैं। परिणामस्वरूप, विषैले रसायनों से युक्त भोजन के कारण डॉक्टरों के पास चक्कर लगाना उनकी नियती बन गई है।
(Culture) इस परिस्थिति में केवल उपदेश देने की बजाय, लोगों को जंगली सब्जियों की पहचान कराने और उन्हें प्रत्यक्ष दिखाकर जागरूकता लाने के उद्देश्य से काणकोण के विधायक व गोवा विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमेश तवडकर तथा पैंगीण की सरपंच एवं बलराम विद्यालय की मुख्याध्यापिका सविता तवडकर ने ‘जंगली सब्जी महोत्सव’ ‘रानभाजी महोत्सव’ की शुरुआत की।
‘स्वयंपूर्ण ग्राम’ की संकल्पना को यथार्थ में उतारते हुए डॉ. तवडकर द्वारा यह आयोजन अत्यंत लोकप्रिय बन चुका है, जिसकी लोकप्रियता अब राजधानी पणजी तक पहुँच चुकी है।
१९ जुलाई २०२५ को काणकोण के रविंद्र भवन में भारी उत्साह के साथ जंगली सब्जी महोत्सव संपन्न हुआ। बलराम शिक्षण संस्था, गोवा जैवविविधता मंडल, वन विभाग आदि की भागीदारी से यह आयोजन सफल रहा। राज्यभर के १८२ स्वयंसहायता समूहों ने इसमें भाग लिया और कुल ४३ प्रकार की स्वादिष्ट जंगली सब्जियों से तैयार व्यंजन प्रस्तुत किए।
जैसे कि बांस के कोमल कोंपल, किल्ल, टाकळा, अळंबी, पिडुकी, अळू, तेर, फागला, भारंगी, आकूर, शेवगा, तेंडली, लाल राजगिरा, कोकम, जंगली पालक, कलम, जंगली भिंडी, रानकेळ, कोळ्याचा मका और अन्य कई प्रकार की सब्जियाँ महोत्सव की शोभा बनीं। इनसे बने विविध व्यंजन स्वाद के साथ-साथ पोषण से भरपूर थे। ३५ से अधिक स्कूलों के छात्रों ने भी अपने-अपने स्टॉल्स लगाकर महोत्सव में भाग लिया।
यह महोत्सव नई पीढ़ी को इन जंगली सब्जियों के महत्व से अवगत कराने में सहायक रहा। इन सब्जियों में अत्यधिक खनिज, औषधीय तत्व व पोषक तत्व होते हैं, जिसे अब आयुष मंत्रालय भी मान्यता दे रहा है। इन पर मानव हस्तक्षेप न के बराबर होता है, जिससे ये प्रदूषण से भी मुक्त रहती हैं।
गोवा के आदिवासी समुदाय ने पारंपरिक ज्ञान और अनुभव से इन जंगली सब्जियों को संरक्षित किया है। वर्ष भर के अलग-अलग मौसम में उगनेवाली यह सब्जियाँ सिर्फ उनका भोजन नहीं, बल्कि उनकी जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा हैं।
‘जंगली सब्जी महोत्सव’ वास्तव में काणकोण लोकोत्सव का ही विस्तारित रूप है, जो गाँवों में रोजगार निर्माण और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। डॉ. रमेश तवडकर की दूरदृष्टि और प्रयासों से यह महोत्सव ग्रामविकास के नए आयाम गढ़ रहा है।
जंगली सब्जियों का संरक्षण व संवर्धन समय की मांग है, और यह महोत्सव लोगों को स्वस्थ जीवनशैली और सतत विकास की ओर प्रेरित करता है। डॉ. रमेश तवडकर को इस नवोन्मेषी प्रयास के लिए शुभकामनाएँ!